काव्य ब्लॉग मंच
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कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मु’अय्यन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती ?
(मु’अय्यन = definite)
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हंसी
अब किसी बात पर नहीं आती
जानता हूं सवाब-ए-ता’अत-ओ-ज़हद
पर तबीयत इधर नहीं आती
(सवाब = reward of good deeds in next life,
ता’अत = devotion,
ज़हद = religious deeds or duties)
है कुछ ’ऐसी ही बात जो चुप हूं
वरना क्या बात कर नहीं आती ?
क्यों न चीखूं कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती
दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आता
बू भी ’ए चारागर ! नहीं आती
(चारागर = healer/doctor)
हम वहां हैं जहां से हमको भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
काब’आ किस मुंह से जाओगे “ग़ालिब
शर्म तुमको मगर नहीं आती
Poetry Of Mirza Ghalib
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