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1817 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्मे रामप्रसाद विस्मिल ने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में चर्चित काकोरी ट्रेन डकैती कांड में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए ब्रिटिश सरकार ने एक डकैती के मामले में फांसी की सजा सुनाई और 19 दिसंबर, 1927 को अन्य साथियों के साथ विस्मिल को फांसी को दे दी गई. काकोरी की घटना को अंजाम देने वाले आजादी के सभी दीवाने उच्च शिक्षित थे। राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही भाषायी ज्ञान में भी निपुण थे। उन्हें अंग्रेजी,हिंदुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था। उनकी प्रसिद्ध कृति सरफरोसी की तमन्ना गाते हुए कितने ही देशभक्त फांसी के फन्दे पर झूल गए। यूं तो वास्तविक गीत बहुत बड़ा है पर इसकी कुछ ही पंक्तियां ज्यादा प्रचलन में होने के कारण यही उपलब्ध हैं. बिस्मिल यह गीत क्रान्तिकारी जेल से अदालत जाते हुए, अदालत में मजिस्ट्रेट को चिढ़ाते हुए व अदालत से लौटकर वापस जेल आते हुए कोरस के रूप में गाया करते थे। बिस्मिल के बलिदान के बाद तो यह रचना सभी क्रान्तिकारियों का मन्त्र बन गयी।
सरफरोशी की तमन्ना
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आस्माँ!
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है?
रहबरे-राहे-मुहब्बत! रह न जाना राह में,
लज्जते-सेहरा-नवर्दी दूरि-ए-मंजिल में है।
खींच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।
अब न अगले वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-‘बिस्मिल’ में है ।
क्रमश:
भारत और विश्व साहित्य पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, हिंदी साहित्य संगोष्ठी,काकोरी कांड (kakori kand)
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